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भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Sectors of Indian Economy class 10 social science chapter 2 notes in Hindi medium

 

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक



अर्थव्यवस्था क्या है ?

  • अर्थव्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जो वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग का प्रबंधन करती है । यह समाज की सभी आर्थिक क्रियाकलापो का एक संयोजन है ।


आर्थिक क्रियाकलाप क्या है ?

  • ऐसे क्रियाकलाप जिनको करके जीवनयापन के लिए आय की प्राप्ति की जाती है, वह आर्थिक क्रियाकलाप कहलाते हैं।


आर्थिक क्रियाकलापो के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रो में वर्गीकृत किया गया है   

1. प्राथमिक क्षेत्रक

  • प्राथमिक क्षेत्रक वह क्षेत्रक है जिसमे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, इसे कृषि व सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है। जैसे कृषि , पशुपालन ,  खनन

2. द्वितीयक क्षेत्रक 

  • वह क्षेत्रक जिसमे प्राथमिक क्षेत्रक से प्राप्त वस्तुओं को लेकर नई वस्तुओं का विनिर्माण किया जाता है, द्वितीयक क्षेत्रक कहलाता है। इसे औद्योगिक क्षेत्रक , निर्माण क्षेत्रक भी कहते हैं । उदाहरणः रूई से धागा बनाना या गन्ने के रस से चीनी बनाना लकड़ी से कुर्सी बनाना ।

3. तृतीयक क्षेत्रक 

  • तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक के उत्पादन गतिविधियों में सहायता करता है । इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं उदाहरणः बैंकिग, परिवहन आदि।


तीन क्षेत्रकों की तुलना का आधार

प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विविध उत्पादन कार्यों से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। इनकी तुलना इस आधार पर कर सकते है जैसे –

  • किस क्षेत्रक में उत्पादन ज्यादा है।
  • किस क्षेत्रक कितने लोग काम करते हैं।
  • अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन और रोज़गार की दृष्टि से सा क्षेत्रक बड़ा है और कौन सा कम है । 


देश में प्रत्येक क्षेत्रक की विविध वस्तुओं और सेवाओं की गणना

  • तीनों क्षेत्रकों में हज़ारों की संख्या में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है और इनकी गणना करना असंभव कार्य है ।

अर्थशास्त्रियों ने वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के योग को सही बताया इसलिए

  • तीनों क्षेत्रकों केवल 'अंतिम वस्तुओं और सेवाओं’ के मूल्य की गणना की जाती है और उसके बाद योगफल प्राप्त करते हैं।
  • केवल 'अंतिम वस्तुओं और सेवाओं’ की ही गणना क्यों की जाती है?
  • दोहरी गणना की समस्या से बचने के लिए हमेशा केवल अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की गणना का ही उपयोग किया जाता है। 

दोहरी गणना की समस्या क्या है 

  • एक किसान किसी आटा-मिल को ₹20 प्रति कि.ग्रा. की दर से गेहूँ  बेचता है।
  • गेहूँ की पिसाई होती के बाद बिस्कुट कंपनी को आटा ₹25 प्रति कि.ग्रा.की दर से बेचा जाता है। 
  • बिस्कुट कंपनी आटा के साथ चीनी एवं तेल जैसी चीज़ों का उपयोग करती है और बिस्कुट के चार पैकेट बनाती है। वह बाजार में उपभोक्ताओं को ₹80 में  बिस्कुट बेचती है। 
  • इसलिए बिस्कुट के अंतिम मूल्य को ही शामिल किया जायेगा जिससे सभी क्षेत्रको की गणना एक साथ हो जायेगी  



सकल घरेलू उत्पाद 

Gross Domestic Product (GDP)

  • किसी विशेष वर्ष में तीनों क्षेत्रकों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यो का योगफल, उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है। 
  • इसे किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं जो किसी भी देश अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है।
  • भारत में यह  कार्य केन्द्र सरकार के मंत्रालय द्वारा किया जाता है। 



क्षेत्रकों में ऐतिहासिक परिवर्तन

  • अधिकांश विकसित देशों के विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक ही आर्थिक सक्रियता का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है।

1. कृषि क्षेत्रक

  • कृषि-प्रणाली में परिवर्तन से अधिक उत्पादन होने लगा और लोग दूसरे कार्य करने लगे जिससे शिल्पियों और व्यापारियों की संख्या में वृद्धि हुई और साथ ही लोग परिवहन, प्रशासक और सैनिक कार्य करने लगे।

2. विनिर्माण क्षेत्रक

  • लम्बे समय (सौ वर्षों से अधिक)के बाद विनिर्माण की नवीन प्रणाली के प्रचलन से कारखाने अस्तित्व में आए जो लोग पहले खेतों में काम करते थे, उनमें से बहुत अधिक लोग अब कारखानों में काम करने लगे। कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक-क्षेत्रक सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया।

3. सेवा क्षेत्रक

  • विगत 100 वर्षों में, विकसित देशों में द्वितीयक क्षेत्रक से तृतीयक क्षेत्रक की ओर पुनः बदलाव हुआ है। कुल उत्पादन की दृष्टि से सेवा क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ गया। अधिकांश श्रमजीवी लोग सेवा क्षेत्रक में ही नियोजित हैं। विकसित देशों में यही सामान्य लक्षण देखा गया है। 



तृतीयक क्षेत्रक का बढ़ता प्रभाव 

  • भारत में पिछले पचास वर्षों में यद्यपि सभी क्षेत्रकों में उत्पादन में वृद्धि हुई, परन्तु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक के उत्पादन में हुई।  तृतीयक क्षेत्रक इतना महत्त्वपूर्ण क्यों हो गया? इसके कई कारण हो सकते हैं।

1. प्रथम , किसी भी देश में अनेक सेवाओं, जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक एवं तार सेवा, थाना, कचहरी, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कंपनी इत्यादि की आवश्यकता होती है। इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है। किसी विकासशील देश में इन सेवाओं के प्रबंधन की जिम्मेदारी सरकार उठाती है।

2. द्वितीय, कृषि एवं उद्योग के विकास से परिवहन, व्यापार, भण्डारण जैसी सेवाओं का विकास होता है । प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक का विकास जितना अधिक होगा, ऐसी सेवाओं की माँग उतनी ही अधिक होगी।

3. तृतीय, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, कुछ लोग अन्य कई सेवाओं जैसे- रेस्तरां , पर्यटन, शॉपिंग, निजी अस्पताल, निजी विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण इत्यादि की माँग शुरू कर देते हैं। विशेषकर बड़े नगरों में इस परिवर्तन को देख सकते हैं।

4. चतुर्थ, विगत दशकों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ महत्त्वपूर्ण एवं अपरिहार्य हो गई हैं।



बेरोजगारी

  • बेरोजगारी वह स्थिति है जब लोग काम करने की इच्छा और क्षमता रखते हैं, लेकिन उनके पास काम पाने का कोई अवसर नहीं होता। यह अर्थव्यवस्था के तीनो क्षेत्रकों के देखने को मिलती है 

1. कृषि में आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हैं यदि आप कुछ लोगों को कृषि क्षेत्र से हटा देते हैं, तब भी उत्पादन प्रभावित नहीं होगा। जहाँ लोग प्रत्यक्ष रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन सभी अपनी क्षमता से कम काम करते हैं इसे अल्प  या प्रच्छन्न बेरोज़गारी भी कहा जाता है।

2. अल्प बेरोज़गारी दूसरे क्षेत्रकों में भी हो सकती है । जैसे विनिर्माण के क्षेत्र में लोगो को हमेशा काम नहीं मिलता  

3. शहरों में सेवा क्षेत्रक में अल्प बेरोज़गारी देखने को मिलती है  हजारों अनियत श्रमिक हैं जो दैनिक रोजगार की तलाश करते हैं। जैसे  पल्म्बर, पेन्टर, मरम्मत कार्य, सड़कों पर ठेला चलाने वाले इन्हें भी हमेशा रोजगार नहीं मिलता 




अतिरिक्त रोज़गार का सृजन कैसे हो?

1. अतिरिक्त रोज़गार के कुछ तरीके 

  • सरकार कुछ मुद्रा व्यय कर सकती है या बैंक ऋण प्रदान कर सकता है
  • किसानों को सस्ते कृषि साख भी प्रदान करने की ज़रूरत है। 
  • अर्द्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में उन उद्योगों और सेवाओं की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना, जहाँ बहुत अधिक लोग नियोजित किए जा सकें।
  • सड़कों, पुलों, रेलवे, और अन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण से संबंधित परियोजनाओं को शुरू करना।

2. नीति आयोग द्वारा आय सृजन के क्षेत्र 

  • नीति आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अकेले शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख रोजगारों का सृजन किया जा सकता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले और अधिक डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ेगी।
  • योजना आयोग के अध्ययन के अनुसार यदि पर्यटन क्षेत्र में सुधार होता है तो हम प्रतिवर्ष 35 लाख से अधिक लोगों को अतिरिक्त रोजगार प्रदान कर सकते हैं।



महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 

(MGNREGA)

  • केन्द्र सरकार ने  भारत के लगभग 625 जिलों में काम का अधिकार लागू करने के लिए एक कानून बनाया इसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम-2005 कहते हैं।
  • इसके अन्तर्गत उन सभी लोगों, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की ज़रूरत है,को सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है। 
  • यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी। अधिनियम के अन्तर्गत उस तरह के कामों को वरीयता दी जाएगी, जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।




संगठित और असंगठित क्षेत्रक का विभाजन

1. संगठित क्षेत्रक

  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं जहाँ रोज़गार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। 
  • वे क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और उन्हें सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना होता है। 
  • इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों, जैसे, कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम, इत्यादि में उल्लेख किया गया है।

संगठित क्षेत्रक में सुविधए :- 

  • सवेतन छुट्टी, अवकाश काल में भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान इत्यादि पाते हैं। 
  • वे चिकित्सीय लाभ पाने के हकदार होते हैं और नियमों के अनुसार कारखाना मालिक को पेयजल और सुरक्षित कार्य-पर्यावरण जैसी सुविधाओं को सुनिश्चित करना होता है। 
  • जब वे सेवानिवृत होते हैं, तो पेंशन भी प्राप्त करते हैं।

2. असंगठित क्षेत्रक

  • असंगठित क्षेत्रक सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं, इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परंतु उनका अनुपालन नहीं होता है।
  • वे कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी इत्यादि का कोई प्रावधान नहीं है।
  • रोजगार सुरक्षित नहीं है। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है। कुछ मौसमों में जब काम कम होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। 




असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों का संरक्षण 

  • बेरोजगारी के चलते लोग  असंगठित क्षेत्रक में काम करने के लिए विवश हुए हैं जहाँ बहुत कम वेतन मिलता है और कार्य नियमित नहीं मिलता 

1. ग्रामीण क्षेत्रों में,असंगठित क्षेत्रक मुख्यतः भूमिहीन कृषि श्रमिकों, छोटे और सीमांत किसानों, फसल बँटाईदारों और कारीगरों (जैसे बुनकरों, लुहारों, बढ़ई और सुनार) से रचित होता है।

2. शहरी क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्रक मुख्यतः लघु उद्योगों के श्रमिकों, निर्माण, व्यापार एवं परिवहन में कार्यरत आकस्मिक श्रमिकों और सड़कों पर विक्रेता का काम करने वालों, सिर पर बोझा ढोने वाले श्रमिकों, वस्त्र-निर्माण करने वालों और कबाड़ उठाने वालों से रचित है।

3. हम यह भी पाते हैं कि बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जातियों से हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में रोज़गार करते हैं।




स्वामित्व आधारित क्षेत्रक

1. सार्वजनिक क्षेत्रक

  • सार्वजनिक क्षेत्रक में, अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • रेलवे अथवा डाकघर सार्वजनिक क्षेत्रक के उदाहरण हैं
  • सार्वजनिक क्षेत्रक का ध्येय केवल लाभ कमाना नहीं होता है। बल्कि सामाजिक न्याय स्थापित करना होता है 
  • जैसे, सड़कों, पूलों, रेलवे, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण और बाँध आदि से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना। 
  • स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना।

2. निजी क्षेत्रक

  • निजी क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर स्वामित्व और सेवाओं के वितरण की ज़िम्मेदारी एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है। 
  • टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) अथवा रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कम्पनियाँ निजी स्वामित्व के उदाहरण हैं 
  • निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का ध्येय लाभ अर्जित करना होता है। इनकी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए हमें इन एकल स्वामियों और कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है। 




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